Tuesday, September 4, 2007

लौट आओ .....!!!!


शबनमी रात सुहानी है, लौट आओ!

एक ग़ज़ल तुम को सुनानी है, लौट आओ!

फिर नया ख्वाब दिखाना है सेहेर होने तक,

फिर नयी शमा जलानी है, लौट आओ!

ना मैं बरबाद हुई हूं, ना रुसवा तुम,

ना-मुकम्मल ये कहानी है, लौट आओ!

तुम से मिल कर हे मैं बिछड़डू, कोई 'मी तो नही,

फिर भी एक रसम निभानी है, लौट आओ...!

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