सोचा नही अच्छा बुरा, देखा सुना कुछ भी नहि....
माँगा खुदा से रात-दिन, तेरे सिवा कुछ भी नही....
देखा तुझे चाहा तुझे, सोचा तुझे पूजा तुझे....
मेरी वफ़ा मेरी ख़ता, तेरी ख़ता कुछ भी नही...
जिस पर हमारी आंख ने, मोती बिछाए रात भर...
भेजा वही काग़ज़ उसे, हम ने लिखा कुछ भी नही..
और एक शाम की देहलिज पर, बैठे रहे वो दैर तक...
आँखों से की बातें बहोत, मुँह से कहा कुछ भी नही...
दो-चार दिन की बात है, दिल ख़ाक मै मिल जाए गा...
आग पर जब काग़ज़ रखा, बाक़ी बचा कुछ भी नही...
बस रात दिन माँगा तुझे,और माँगा कुछ भी नही...
माँगा खुदा से रात-दिन, तेरे सिवा कुछ भी नही....
देखा तुझे चाहा तुझे, सोचा तुझे पूजा तुझे....
मेरी वफ़ा मेरी ख़ता, तेरी ख़ता कुछ भी नही...
जिस पर हमारी आंख ने, मोती बिछाए रात भर...
भेजा वही काग़ज़ उसे, हम ने लिखा कुछ भी नही..
और एक शाम की देहलिज पर, बैठे रहे वो दैर तक...
आँखों से की बातें बहोत, मुँह से कहा कुछ भी नही...
दो-चार दिन की बात है, दिल ख़ाक मै मिल जाए गा...
आग पर जब काग़ज़ रखा, बाक़ी बचा कुछ भी नही...
बस रात दिन माँगा तुझे,और माँगा कुछ भी नही...
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