Wednesday, May 7, 2008


कुछ लिखना चाहती हूँ क्या लिखु...??

फूलों की वो महकती खुशबु ,

बारिश का वो भीगा पानी,

और हवा मैं थी जो रवानी,

क्या उस मौसम का खुमार लिखु॥??

कुछ लिखना चाहती हूँ क्या लिखु॥??

थी चहरे पे उनकी मासूमियत,

आँखों मैं थोडी शरारत,

और बातों मैं वो नजाकत,

क्या उनका ये रंगीन मिजाज लिखु॥??

कुछ लिखना चाहती हूँ क्या लिखु॥??

उनका आकर मुस्कुराना,

जो रूठ जाऊ तो मनाना,

जाते जाते फिर रुलाना,

क्या उनका ये अन्दाझ लिखु॥??

कुछ लिखना चाहती हूँ क्या लिखु॥??

यादों मैं उनकी अश्क बहाना,

हर शाम एक दिया जलना,

सोयी उम्मीद को रोज जगाना,

क्या उनका ये इन्तजार लिखूं॥??

कुछ लिखना चाहती हूँ क्या लिखु..??

Tuesday, September 4, 2007

सलाम....

आज एक शख्स दूर से ही सलाम कर गया
अपनी चाहतो का हमे गुलाम कर गया..

अपनी ज़न्दगी गिरवी रख कर ख़रीदा था जिसे ...
आज वो शख्स ही हमे नीलाम कर गया

तेरे सिवा कुछ भी नही ....


सोचा नही अच्छा बुरा, देखा सुना कुछ भी नहि....

माँगा खुदा से रात-दिन, तेरे सिवा कुछ भी नही....

देखा तुझे चाहा तुझे, सोचा तुझे पूजा तुझे....

मेरी वफ़ा मेरी ख़ता, तेरी ख़ता कुछ भी नही...

जिस पर हमारी आंख ने, मोती बिछाए रात भर...

भेजा वही काग़ज़ उसे, हम ने लिखा कुछ भी नही..

और एक शाम की देहलिज पर, बैठे रहे वो दैर तक...

आँखों से की बातें बहोत, मुँह से कहा कुछ भी नही...

दो-चार दिन की बात है, दिल ख़ाक मै मिल जाए गा...

आग पर जब काग़ज़ रखा, बाक़ी बचा कुछ भी नही...

बस रात दिन माँगा तुझे,और माँगा कुछ भी नही...

लौट आओ .....!!!!


शबनमी रात सुहानी है, लौट आओ!

एक ग़ज़ल तुम को सुनानी है, लौट आओ!

फिर नया ख्वाब दिखाना है सेहेर होने तक,

फिर नयी शमा जलानी है, लौट आओ!

ना मैं बरबाद हुई हूं, ना रुसवा तुम,

ना-मुकम्मल ये कहानी है, लौट आओ!

तुम से मिल कर हे मैं बिछड़डू, कोई 'मी तो नही,

फिर भी एक रसम निभानी है, लौट आओ...!

Monday, September 3, 2007

तू कहा है ???

किसी कि जान पे बन आयी है.............
तू कहा है ??

किसी के दिल से आवाज आयी है............
तू कहा है ??

किसी से अब सही नही जाती ये तनहाई है..............
तू कहा है ??

खुदा ने दो पल कि ही दी है जिंदगानी..............
तू कहा है ??
तू कहा है ??

Wednesday, August 29, 2007



" रंग रंगात माझ्या रंगून जा तू....
अंग अंगात माझ्या मिसळून जा तू.....
होऊन पाउस माझ्या मनाचा....
हया तप्त भूमि वर बरसुनी जा तू .....
मृदगंध हया मनाला देऊन जा तू .....
होऊन वसंत हया मनाची...
बाग़ फुलवुन जा तू.....
सुगंध हया कळीला देऊन जा तू .....
होऊन श्वास माझा ...
अणू-रेणूत माझ्या भिनून जा तू ....
स्पर्शून माझ्या आत्म्याला....
ओळख जन्मानतरीची देऊन जा तू ...."

Sunday, May 20, 2007

सखी


अशी लाजली सखी आज मे, देह्भान विसरालो;
गाता -गाता गीत प्रितिचे स्वर-ताल विसरालो.
गाली फुलाली अशी खळी , मी निजधाम विसरालो;
पापनिताल्या लाजे मधे, अखंड आज मोहरालो
अशी लाजली सखी आज, मे तप्त ग्रीष्म विसरालो
वणव्यात आज ग्रीष्मच्या
मी वर्षा ऋत अनुभवलो.......